Jai Jungle Team with Gond tribal community members in the deep forests of Bastar, Chhattisgarh, highlighting Mahua traditions and tribal livelihoods.

आदिवासी भोजन परंपराओं में महुआ की अहमियत

जब जंगल ही रसोई बन जाते हैं

मध्य और पूर्वी भारत के जंगलों में महुआ (Madhuca longifolia) केवल एक पेड़ नहीं है। यह रसोई है, अनाज भंडार है और जीवन का सहारा है। गोंड, मुड़िया, उरांव, संथाल, हो और कई अन्य आदिवासी समुदायों के लिए महुआ के फूल भोजन की सुरक्षा, त्योहारों की मिठास और कठिन समय में जीने की ताक़त हैं।

गर्मियों के महीनों (मार्च–जून) में जब अनाज के भंडार खाली हो जाते हैं और अगली फसल महीनों दूर होती है, तब महुआ ही भूख से बचाने वाला साथी बनता है। इसी वजह से कई आदिवासी परिवार कहते हैं:
👉 “जहाँ महुआ है, वहाँ भूख नहीं है।”


कठिन समय में भोजन की सुरक्षा

छत्तीसगढ़ स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट और डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट बताती है कि भारत के लगभग 75% आदिवासी परिवार महुआ फूल संग्रह पर निर्भर हैं।

  • एक परिवार 3–5 क्विंटल तक फूल हर साल जमा करता है।
  • जिन घरों के पास 8–10 महुआ पेड़ हैं, वे सालाना ₹80,000–1,00,000 तक कमा लेते हैं।
  • इससे भी ज़्यादा अहम यह है कि महुआ वाले परिवार सूखे या फसल खराब होने पर भी भूख से नहीं जूझते।

महुआ इसलिए सिर्फ़ मिठास नहीं, बल्कि ग्रामीण भोजन सुरक्षा का स्तंभ है।


संग्रह, सुखाना और भंडारण

  • संग्रह: फूल गिरने से पहले परिवार पेड़ के नीचे ज़मीन साफ़ करते हैं। महिलाएँ और बच्चे सुबह-सुबह फूल बटोरते हैं।
  • सुखाना: पारंपरिक रूप से फूलों को 2–3 दिन धूप में सुखाया जाता है। आजकल जालियों (nets) से छाँव में सुखाने की तकनीक अपनाई जा रही है ताकि पोषण और स्वच्छता बनी रहे।
  • भंडारण: सूखे फूल बांस की टोकरी या मिट्टी के घड़ों में पत्तों की परत के साथ रखे जाते हैं। सही तरह से रखने पर फूल सालभर सुरक्षित रहते हैं।

यह प्रक्रिया केवल व्यावहारिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी है — इसमें गाने, सामूहिक श्रम और परंपरा सब शामिल होते हैं।


महुआ से बने पारंपरिक खाद्य

1. दलिया और रोटी – भूख में जीवनदाता

महुआ दलिया कठिन समय का मुख्य भोजन था। फूल भिगोकर पीसा जाता और रागी, कोदो या अन्य छोटे अनाज के साथ पकाया जाता। यह मीठा, खनिजों से भरपूर दलिया किसानों को दिनभर खेतों में काम करने की ताक़त देता।

कुछ जगह सूखे फूल पीसकर रोटी के आटे में मिलाए जाते, जिससे रोटियाँ मीठी और पेट भरने वाली बनतीं। एक कटोरी दलिया ही भूख मिटाने का सहारा था।


2. लड्डू – त्योहार और ताक़त दोनों

सूखे फूलों को गुड़, तिल, अलसी या मेवों के साथ मिलाकर लड्डू बनाए जाते थे। शादी–त्योहारों पर ये समृद्धि का प्रतीक थे, और किसानों व बच्चों के लिए तुरंत ऊर्जा देने वाले नाश्ते

माएँ बच्चों को लड्डू सिर्फ़ स्वाद नहीं, बल्कि ताक़त और सेहत का तोहफ़ा समझकर देती थीं।


3. पाचक – भोजन ही दवा

फूलों को जीरा, अदरक, अजवाइन और काला नमक के साथ भूनकर पाचक बनाया जाता था। यह भोजन के बाद खाया जाता और सफ़र या शिकार पर भी साथ ले जाया जाता।

यह बताता है कि आदिवासी जीवन में महुआ भोजन और औषधि का संगम था।


4. नाश्ता और सब्ज़ियाँ – भूख का सहारा

जब खाने की चीज़ें कम पड़तीं, तो महुआ मुख्य भोजन बन जाता। फूलों को चावल या दाल के साथ पकाकर सब्ज़ी या खिचड़ी जैसी डिश बनाई जाती।

ओडिशा में सूखे फूल मसालों के साथ तलकर कुरकुरे नाश्ते बनाए जाते। बच्चे सूखे फूलों को प्राकृतिक टॉफ़ी की तरह चबाते — भूख के बीच भी छोटी-छोटी खुशियाँ


5. किण्वित पेय – खेतों के लिए ऊर्जा

महुआ की मिठास उसे किण्वन के लिए उपयुक्त बनाती थी। शराब के अलावा घरों में हल्के, गैर-मादक पेय भी बनाए जाते थे। यह पेय गर्मियों में प्यास बुझाने, इलेक्ट्रोलाइट्स भरने और शरीर को ताक़त देने का काम करते थे।

किसानों के लिए यह प्राकृतिक ऊर्जा ड्रिंक था।


कठिनाइयों में पोषण का आधार

सदियों से महुआ आदिवासी भारत का पोषण सुरक्षा जाल रहा है।

  • शर्करा: तुरंत और लंबे समय तक ऊर्जा।
  • प्रोटीन और अमीनो एसिड्स: शरीर की मरम्मत और वृद्धि।
  • आयरन और कैल्शियम: खून और हड्डियों की मज़बूती।
  • मैग्नीशियम और जिंक: रोग प्रतिरोधक क्षमता और मेटाबॉलिज़्म।
  • भंडारण क्षमता: सूखे फूल सालभर चल जाते थे।

बुज़ुर्ग अक्सर कहते थे:
👉 “जब तक महुआ है, कोई भूखा नहीं सोएगा।”


जय जंगल और महुआ को भोजन के रूप में पुनर्जीवित करना

जशपुर की जय जंगल किसान उत्पादक कंपनी आज आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर महुआ को भोजन के रूप में फिर से पहचान दिला रही है। संग्रह जाल, स्वच्छ सुखाने की विधियाँ और पारंपरिक व्यंजनों (दलिया, लड्डू, चाय) को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करके जय जंगल यह दिखा रहा है कि महुआ भोजन और पोषण दोनों का भविष्य है।


घटता उपयोग और आज की स्थिति

आज महुआ का भोजन के रूप में उपयोग बहुत कम हो गया है। औपनिवेशिक नीतियों ने इसे शराब से जोड़ दिया और सरकारी वितरण प्रणाली (PDS) ने चावल-गेहूँ को बढ़ावा दिया। नई पीढ़ी महुआ को भोजन नहीं, नशा मानने लगी है।

इसके गंभीर परिणाम हैं:

  • सूक्ष्म पोषक तत्वों का नुकसान जो पहले महुआ से मिलता था।
  • भोजन स्वराज्य (food sovereignty) की कमी, क्योंकि समुदाय बाज़ार पर निर्भर हो रहे हैं।
  • संस्कृति का ह्रास, क्योंकि महुआ से जुड़े गीत, त्यौहार और परंपराएँ गुम हो रही हैं।

भविष्य के लिए भोजन और पहचान

महुआ सिर्फ़ एक फूल नहीं है, यह आदिवासी पोषण और संस्कृति का संग्रहालय है। इसने भूख से बचाया, शरीर को ताक़त दी और उत्सवों को मिठास दी।

आज ज़रूरी है कि महुआ को फिर से भोजन के रूप में अपनाया जाए — ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वास्थ्य, सम्मान और सांस्कृतिक पहचान का आधार बन सके।


संदर्भ
  1. अहिरवार, आर.के. आदि (2018). महुआ फूल की पोषण संरचना. JETIR1801080.
  2. सिंह, वि. आदि (2020). महुआ फूल और फल में एंटीऑक्सीडेंट व खनिज तत्वों का अध्ययन. Nutrition & Food Science.
  3. दास, एस.के. (2019). महुआ: फार्मेसी और फूड इंडस्ट्री के लिए वरदान. IJCS.
  4. India Water Portal (2020). आदिवासी भोजन में महुआ का स्थान.
  5. Down To Earth (2018). महुआ का मौसम: जिन घरों में महुआ है वहाँ भूख नहीं।
  6. मौखिक परंपराएँ – छत्तीसगढ़ और ओडिशा के आदिवासी समुदायों से।

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