Aneshwari Bhagar, Director of Jai Jungle, filling sample bottles of Mahua sanitizer during the early COVID-19 pandemic response in Jashpur, Chhattisgarh.

महुआ पेय – देसी शराब से वाइन और आधुनिक पेयों तक

जब एक फूल पेय बनता है

भारत की विविध जैव-संपदा में महुआ (Madhuca longifolia) का नाम सबसे खास है। यह पेड़ न केवल जंगल की सुंदरता है, बल्कि आदिवासी जीवन का आधार, भोजन, संस्कृति और पेय भी है। इसके फूलों की मिठास ने सदियों से भूख मिटाई, त्योहारों को सजाया और कठिन समय में लोगों को सहारा दिया।

महुआ की एक अद्भुत विशेषता है — इसके फूलों में मौजूद प्राकृतिक शर्करा (40–70% तक सूखे फूलों में) इसे किण्वन (fermentation) के लिए आदर्श बनाती है। यही वजह है कि आदिवासी समाज ने बहुत पहले से ही इन फूलों का उपयोग पेय बनाने में करना शुरू कर दिया।

परंतु महुआ की कहानी विरोधाभासों से भरी है —

  • यह आदिवासी समाज के लिए पवित्र और जीवनदायी है।
  • लेकिन मुख्यधारा समाज ने इसे केवल देशी शराब का नाम देकर कलंकित कर दिया।
  • आज, विज्ञान और नवाचार फिर से महुआ को नए रूपों में पहचान दिला रहे हैं — वाइन, मॉकटेल्स, हर्बल टी और यहाँ तक कि बायोइथेनॉल

🏺 परंपरागत महुआ शराब – जीवन, उत्सव और संघर्ष

बनाने की विधि

  • फूलों को मार्च–अप्रैल में इकट्ठा कर सुखाया जाता है।
  • सूखे फूलों को पानी में भिगोया जाता है, जहाँ प्राकृतिक यीस्ट स्वतः किण्वन शुरू करता है।
  • 2–3 दिनों में यह मिश्रण हल्का खट्टा-मीठा हो जाता है।
  • इसके बाद मिट्टी या धातु के बर्तनों में आसवन (distillation) किया जाता है।
  • परिणामस्वरूप निकलती है एक पारदर्शी, सुगंधित और तेज़ पेय — महुआ शराब

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

  • धार्मिक भूमिका: शादी-ब्याह, फसल कटाई, पूर्वज पूजा और गाँव के मेलों में महुआ शराब चढ़ाई जाती है। यह केवल नशा नहीं बल्कि देवताओं और पितरों को अर्पण है।
  • सामाजिक बंधन: दावतों में सबको एक ही प्याले से पिलाना यह संदेश देता है कि सब बराबर हैं।
  • जीवन रक्षा: गर्मी और अकाल के महीनों में महुआ से बने पेय ऊर्जा और पानी दोनों की कमी पूरी करते हैं।

कलंक और नीतिगत दखल

  • ब्रिटिश शासन के दौरान आबकारी कानूनों ने महुआ को केवल शराब तक सीमित कर दिया।
  • टैक्स और नियमों ने इसे “देशी शराब” कहकर गरीबी और नशे से जोड़ दिया।
  • नतीजतन, महुआ का पोषण और सांस्कृतिक महत्व पीछे छूट गया।

🔬 विज्ञान और किण्वन – शोध क्या बताते हैं

किण्वन क्षमता

  • महुआ के फूलों में सुक्रोज़, ग्लूकोज़ और फ्रुक्टोज़ जैसे सरल शर्कराएँ होती हैं।
  • Saccharomyces cerevisiae यीस्ट से 10–12% तक एथेनॉल तैयार किया जा सकता है।

शोध परिणाम

  • Parmar (2020) ने अंगूर की वाइन में 10% महुआ का अर्क मिलाकर पाया कि अल्कोहल की मात्रा बढ़ गई, टैनिन कम हुए और स्वाद अधिक संतुलित हो गया।
  • Jha et al. (2013) ने पारंपरिक आसवन तकनीक में सुधार करके एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने और खट्टापन घटाने के तरीके सुझाए।
  • Singh et al. (2020) ने महुआ के फूल और फल में पाए जाने वाले खनिज और एंटीऑक्सीडेंट की पुष्टि की, जो इसे केवल पेय ही नहीं बल्कि फंक्शनल फूड भी बनाते हैं।

उप-उत्पाद

  • आसवन के बाद बचा अवशेष प्रोटीन और टैनिन से भरपूर होता है।
  • इसका उपयोग मवेशियों के चारे, कम्पोस्ट और यहाँ तक कि बायोगैस बनाने में भी किया जा सकता है।

🍹 शराब से आगे – आधुनिक और स्वस्थ विकल्प

1. क्राफ्ट वाइन और वर्माउथ

  • भारत में कुछ छोटे उद्यम महुआ से क्राफ्ट वाइन बना रहे हैं।
  • इसका स्वाद फूलों की मिठास और फलों जैसी ताजगी लिए होता है।
  • महुआ आधारित वर्माउथ (हर्बल वाइन) पर भी प्रयोग चल रहे हैं।

2. नॉन-अल्कोहलिक फर्मेंटेड पेय

  • आदिवासी समाज में हल्के किण्वित महुआ दलिया/पेय आम हैं।
  • ये गर्मी में शरीर को हाइड्रेट और ऊर्जा से भरपूर रखते हैं।
  • इन्हें वैज्ञानिक रूप से विकसित करके भारत का कोम्बुचा बनाया जा सकता है।

3. रेडी-टू-ड्रिंक इनोवेशन

  • जशपुर की Jai Jungle Farmers Producer Company महुआ से नेक्टर, हर्बल टी और मॉकटेल विकसित कर रही है।
  • ये उत्पाद आधुनिक उपभोक्ताओं के लिए लो-ग्लाइसेमिक, एनर्जी-बूस्टिंग और प्रिज़र्वेटिव-फ्री हैं।

🌍 सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

  • पवित्रता का प्रतीक: महुआ पेय को पूर्वजों को चढ़ाना पीढ़ियों को जोड़ने का प्रतीक है।
  • सामाजिक मेलजोल: यह पेय सामूहिक उत्सवों में बराबरी और भाईचारे का भाव लाता है।
  • पहचान: कई आदिवासी समुदायों के लिए महुआ केवल पेय नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और अस्मिता है।

⚖️ चुनौतियाँ – परंपरा और आधुनिकता के बीच

  • स्वास्थ्य जोखिम: बिना नियंत्रित आसवन से जहरीली शराब बन सकती है।
  • कानूनी पाबंदी: कई राज्यों में महुआ शराब पर कड़ी पाबंदियाँ हैं, जिससे आदिवासी परंपराएँ अपराध जैसी मानी जाती हैं।
  • सांस्कृतिक कलंक: इसे केवल शराब मानना महुआ के असली मूल्य को नकारना है।
  • बाज़ार शोषण: बिचौलियों को फायदा होता है जबकि असली संग्राहक महिलाओं को कम दाम मिलते हैं।

🌱 Jai Jungle का प्रयास – महुआ को नया रूप देना

Jai Jungle Farmers Producer Company जशपुर में महुआ की नई पहचान बनाने पर काम कर रही है।

  • यहाँ शराब को बढ़ावा नहीं दिया जाता, बल्कि महुआ को स्वास्थ्यवर्धक और फूड-ग्रेड पेयों में बदला जा रहा है।
  • महुआ नेक्टर प्राकृतिक एनर्जी ड्रिंक के रूप में विकसित किया गया है।
  • हर्बल इन्फ्यूज़न और चाय (तुलसी, लेमनग्रास, ग्रीन टी के साथ) तैयार किए जा रहे हैं।
  • युवाओं के लिए मॉकटेल्स और रेडी-टू-ड्रिंक इनोवेशन विकसित किए जा रहे हैं।

इससे महुआ को केवल शराब तक सीमित करने के बजाय एक सुपरफूड और आधुनिक पेय के रूप में पहचान दिलाई जा रही है।


🔮 निष्कर्ष – कलंक से गौरव तक की यात्रा

महुआ पेय की यात्रा अद्भुत है —

  • जंगल में गिरे फूलों से लेकर देसी शराब तक,
  • औपनिवेशिक कलंक से लेकर आधुनिक विज्ञान तक,
  • और अब वाइन, मॉकटेल और बायोइथेनॉल तक।

भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि हम महुआ को कैसे देखें। क्या यह केवल “देशी शराब” है? या फिर यह भारत का अगला वैश्विक सुपरफूड पेय है, जिसमें संस्कृति, पोषण और नवाचार तीनों का संगम है?

महुआ को बचाना और पुनर्जीवित करना केवल आदिवासी समुदायों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और स्वास्थ्य विरासत के लिए ज़रूरी है।


संदर्भ
  1. Parmar, R. (2020). Development of Mahua flower enriched wheat-based laddoo & fermentation experiments.
  2. Jha, P. et al. (2013). Improvement over traditional brewing techniques for production of bioethanol from Mahua.
  3. Singh, V. et al. (2020). Assessment of antioxidant activity, minerals and chemical constituents of edible Mahua flower and fruit. Nutrition & Food Science.
  4. Das, S.K. (2019). Mahua: A boon for pharmacy and food industry. International Journal of Chemical Studies.
  5. Down To Earth (2018). It’s Mahua season: Hunger is non-existent in households which have this forest produce.
  6. India Water Portal (2020). Mahua in tribal food systems.
  7. मौखिक परंपराएँ और गोंड, उरांव, संथाल समुदायों के लोकगीत।

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