भारतीय आटे की परंपरा के पीछे का विज्ञान
Jai Jungle: Science Behind Tradition
सदियों तक भारत के घरों में धीमी गति से घूमती घरैलू हाथ से चलने वाली चक्की की आवाज़ रसोई का हिस्सा रही है। यह सिर्फ़ एक उपकरण नहीं थी, बल्कि हर घर की ताज़गी, पोषण और स्वाद की पहचान थी।
धीरे-धीरे, जब बिजली और मशीनों का दौर आया, तो इनकी जगह रोलर मिलों ने ले ली — तेज़, एकसमान और औद्योगिक स्तर पर उत्पादन करने वाली।
पर अब सवाल यह है — क्या पारंपरिक हाथ चलाई चक्की का आटा वाकई ज़्यादा पौष्टिक है? या यह सिर्फ़ पुरानी यादों की बात है?
आइए विज्ञान की नज़र से देखें कि गेहूं पीसने के इन दो तरीकों में पोषण, ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI), स्वाद और सेहत पर क्या असर पड़ता है।
1. दो पद्धतियाँ — दो सोच
1.1 घरैलू पारंपरिक चक्की (Hand Chakki)
घरैलू चक्की में दो पत्थर होते हैं — ऊपर वाला घूमने वाला, नीचे स्थिर। जब इसे हाथ से धीरे-धीरे घुमाया जाता है, तो गेहूं के दाने धीरे दबाव और हल्के घर्षण से पिसते हैं।
इस प्रक्रिया में पूरा दाना — भूसी (Bran), अंकुर (Germ) और एन्डोस्पर्म (Endosperm) — एक साथ पीसकर संपूर्ण (Whole Grain) आटा बनता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रक्रिया ठंडी रहती है।
क्योंकि इसमें मशीन नहीं, बल्कि हाथ का प्रयोग होता है, तापमान आमतौर पर 35–45°C से अधिक नहीं बढ़ता।
यही कारण है कि इसे “कोल्ड प्रोसेसिंग (Cold Processing)” कहा जा सकता है।
इतने कम तापमान पर विटामिन E, ओमेगा-3 फैटी एसिड्स और एंज़ाइम्स जैसे संवेदनशील पोषक तत्व पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं।
धीमी गति से चलने वाली यह पद्धति आटे में हल्का असमान दानेदार बनावट देती है — कुछ कण बारीक, कुछ मोटे — जो पाचन को धीमा करती है और रोटी को एक प्राकृतिक बनावट देती है।
1.2 आधुनिक रोलर मिलिंग
रोलर मिलों में गेहूं कई स्टील रोलर्स और सिफ्टर्स से होकर गुजरता है। इस दौरान दाने के तीनों हिस्से — भूसी, अंकुर और एन्डोस्पर्म — अलग किए जाते हैं और जरूरत पड़ने पर वापस मिलाए जाते हैं।
यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत ठंडी रहती है (30–40°C) और आटा बहुत महीन तथा एकसमान बनता है।
औद्योगिक दृष्टि से यह लाभदायक है क्योंकि ब्रेड, बिस्किट और अन्य उत्पादों की बनावट समान रहती है।
लेकिन समस्या तब आती है जब मिलें भूसी और अंकुर को हटा देती हैं — तब यह रिफाइंड आटा (मैदा) बन जाता है, जो दिखने में अच्छा लेकिन पोषण में कमजोर होता है।
2. असली अंतर — “संपूर्ण” बनाम “परिष्कृत”
अक्सर हम सुनते हैं — “चक्की का आटा हेल्दी होता है।”
यह सही है, लेकिन कारण मशीन नहीं, बल्कि यह है कि घरैलू चक्की का आटा संपूर्ण (Whole Grain) होता है जबकि रोलर मिल का आटा अक्सर रिफाइंड (Refined) होता है।
| घटक | संपूर्ण गेहूं (Whole Wheat) | रिफाइंड आटा (मैदा) | पोषण हानि (%) |
|---|---|---|---|
| फाइबर | 11–12 g/100g | 0.5–1 g/100g | ~90% |
| लोहा | 4–5 mg/100g | 2 mg/100g | ~50% |
| मैग्नीशियम | 120 mg/100g | 30 mg/100g | ~75% |
| विटामिन E | 1.5–2 mg/100g | लगभग शून्य | ~90% |
| विटामिन B₁ | 0.4 mg/100g | 0.06 mg/100g | ~80% |
जैसा कि तालिका दिखाती है —
सबसे बड़ा अंतर रिफाइनमेंट से आता है, मशीन से नहीं।
अगर रोलर मिल “Whole Wheat” आटा बनाए, तो उसका पोषण स्तर पारंपरिक चक्की जैसा ही होता है।
3. तापमान, तेल और विटामिन का संतुलन
3.1 घरैलू चक्की का “कूल प्रोसेसिंग” लाभ
हाथ से चलने वाली चक्की में पीसाई की गति इतनी धीमी होती है कि आटा ज़्यादा गर्म नहीं होता।
वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो तापमान 35–45°C के बीच रहता है, जो विटामिन और तेलों को सुरक्षित रखने के लिए आदर्श है।
इसके विपरीत, जिन अध्ययनों में 80–90°C तापमान बताया गया है, वे मोटर चालित व्यावसायिक स्टोन मिलों पर आधारित हैं — न कि घरैलू चक्कियों पर।
इस ठंडे पीसने की प्रक्रिया में आटे के ये लाभ होते हैं:
- विटामिन E (टोकोफ़ेरॉल) सुरक्षित रहता है।
- लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3) ऑक्सीडाइज़ नहीं होता।
- एंज़ाइम्स सक्रिय रहते हैं, जो आटे के स्वाद और पाचन में मदद करते हैं।
इस तरह का आटा रासायनिक रूप से स्थिर और पौष्टिक होता है, बशर्ते इसे ताज़ा उपयोग किया जाए।
3.2 रोलर मिल का तापमान
रोलर मिलिंग में भी तापमान कम रहता है (~35°C), लेकिन समस्या यह है कि इसमें अंकुर और तेलों को हटाकर आटे की शेल्फ लाइफ बढ़ाई जाती है।
इससे पोषक तत्व तो बच जाते हैं, पर प्राकृतिक सुगंध और तेलीय स्वाद खत्म हो जाता है।
4. स्टार्च, पानी अवशोषण और रोटी की बनावट
पारंपरिक चक्की से पिसे आटे में स्टार्च के कुछ कण टूट जाते हैं, जिससे डैमेज स्टार्च (Damaged Starch) बनता है।
इसकी मात्रा सामान्यतः 6–9% होती है — इतनी कि आटा ज़्यादा पानी सोखे और मुलायम बने, पर अत्यधिक न हो।
इससे रोटी में यह लाभ होते हैं:
- आटा ज़्यादा पानी सोखता है।
- रोटियाँ अंदर से नम और मुलायम बनती हैं।
- पकाते समय फुलने की क्षमता (Puffing) बेहतर रहती है।
रोलर आटे में स्टार्च डैमेज कम होता है (4–6%), इसलिए रोटियाँ थोड़ी सख्त हो सकती हैं जब तक पानी की मात्रा 10–15% न बढ़ाई जाए।
सारांश रूप में:
- घरैलू चक्की = नरम, स्वादिष्ट रोटी
- रोलर मिल = महीन लेकिन थोड़ा सूखा आटा
5. कण आकार और ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI)
GI बताता है कि भोजन से ब्लड शुगर कितनी जल्दी बढ़ता है।
पारंपरिक चक्की का आटा थोड़ा मोटा और विविध आकार का होता है, जिससे पाचन धीमा होता है और GI कम रहता है।
रोलर आटा बहुत महीन होता है, इसलिए उसका पाचन तेज़ होता है।
शोध (Reynolds et al., 2020) में पाया गया कि जिन ब्रेड्स में मोटे दाने शामिल थे, उनमें ब्लड शुगर 20% तक कम बढ़ा।
अर्थात् —
GI पर असर मशीन से नहीं, बल्कि कणों के आकार और फाइबर से होता है।
दोनों Whole Wheat आटे “Low GI” श्रेणी में आते हैं, पर घरैलू चक्की का आटा थोड़ा बेहतर होता है।
6. स्वाद, सुगंध और ताज़गी
पारंपरिक चक्की का आटा हल्की नटी (Nutty) और मीठी खुशबू देता है।
इसका कारण है — अंकुर का तेल और सक्रिय एंज़ाइम्स।
ताज़ा पिसा आटा पकने पर अरोमेटिक यौगिक छोड़ता है, जिससे रोटियों में विशिष्ट स्वाद आता है।
लेकिन यही तेल आटे को जल्दी खराब भी कर सकता है।
4–6 हफ़्तों बाद इसमें बासीपन (Rancidity) आ सकता है।
इसीलिए पुरानी परंपरा रही है — “हर महीने ताज़ा आटा पिसवाओ।”
यह केवल संस्कृति नहीं, बल्कि वैज्ञानिक व्यवहार था।
7. स्वास्थ्य लाभ
- फाइबर और पाचन: संपूर्ण आटा आंतों को स्वस्थ रखता है।
- ब्लड शुगर नियंत्रण: Whole Wheat आटे से टाइप-2 डायबिटीज़ का जोखिम घटता है।
- हृदय स्वास्थ्य: अंकुर के तेल और एंटीऑक्सीडेंट्स से कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है।
- वजन नियंत्रण: फाइबर से तृप्ति जल्दी होती है, जिससे अनावश्यक खाना कम होता है।
एक भारतीय अध्ययन (Malik et al., 2019) में पाया गया कि रिफाइंड अनाज की जगह Whole Grain अपनाने से डायबिटीज़ का खतरा 13% तक घटा।
8. घरों के लिए व्यावहारिक सुझाव
- संपूर्ण गेहूं का चयन करें — फाइबर 10–12% होना चाहिए।
- कम गति पर पीसें — ज्यादा रगड़ या मोटर का उपयोग न करें।
- आटा छानें नहीं — भूसी हटाने से पोषण कम होता है।
- छोटे बैच में पीसें — जितना 3–4 हफ्तों में उपयोग हो सके।
- ठंडी और बंद जगह में रखें, या गर्म मौसम में फ्रिज में।
- मुलायम रोटियों के लिए — आटे को 20–30 मिनट आराम दें और थोड़ा तेल मिलाएँ।
- मोटे और बारीक आटे को मिलाकर GI और बनावट दोनों संतुलित करें।
- खमीर या खट्टे आटे वाली रेसिपी में इसका उपयोग करें — पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
9. परंपरा और विज्ञान का मेल
घरैलू चक्की सिर्फ़ मेहनत का प्रतीक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से बुद्धिमान पद्धति है।
इसकी धीमी और ठंडी पीसाई अनाज के प्राकृतिक तेलों और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स को सुरक्षित रखती है —
यह वही सिद्धांत है जिस पर आज “कोल्ड-प्रेस्ड” तेल या “स्टोन-ग्राउंड” उत्पाद आधारित हैं।
आधुनिक रोलर मिलें स्वच्छता और दक्षता देती हैं,
लेकिन घरैलू चक्की ताज़गी और जीवन्तता।
दोनों को मिलाकर ही हम “Science of Tradition” को आगे बढ़ा सकते हैं।
10. मुख्य निष्कर्ष
| बिंदु | घरैलू हाथ से चलने वाली चक्की | आधुनिक रोलर मिल |
|---|---|---|
| तापमान | 35–45°C (ठंडा) | 30–40°C |
| अनाज के हिस्से | सभी शामिल (Whole Grain) | कई बार भूसी अलग |
| स्टार्च डैमेज | मध्यम (मुलायम आटा) | कम |
| कण आकार | मिश्रित (मोटे + बारीक) | अत्यंत महीन |
| विटामिन E और तेल | सुरक्षित | अक्सर हटाए जाते हैं |
| बनावट | मुलायम और फूली रोटी | थोड़ी सख्त |
| शेल्फ लाइफ | 4–6 हफ़्ते | अधिक |
| GI प्रभाव | थोड़ा कम | लगभग समान |
11. निष्कर्ष
विज्ञान यह साबित करता है कि घरैलू हाथ से चलने वाली चक्की केवल पारंपरिक उपकरण नहीं, बल्कि एक स्मार्ट कोल्ड-प्रोसेसिंग सिस्टम है।
यह न केवल विटामिन और फाइबर को सुरक्षित रखती है, बल्कि स्वाद और सुगंध में भी श्रेष्ठ है।
रोलर मिलें अपनी जगह उपयोगी हैं — बड़े उत्पादन के लिए,
लेकिन घरेलू उपयोग के लिए ताज़ा पिसा हुआ Whole Wheat आटा अब भी सर्वश्रेष्ठ है।
यह परंपरा नहीं,
बल्कि “पोषण का विज्ञान” है जिसे हमें फिर से अपनाना चाहिए।
संदर्भ (References)
- Carcea, M. et al. (2020). Stone Milling versus Roller Milling in Soft Wheat: Influence on Products Composition. Foods, 9(1):3.
- Prabhasankar, P. & Rao, P.H. (2001). Effect of Different Milling Methods on Chemical Composition of Whole Wheat Flour. European Food Research and Technology, 213:465–469.
- Reynolds, A.N. et al. (2020). Wholegrain Particle Size Influences Postprandial Glycemia in Type 2 Diabetes. Diabetes Care, 43(2):476–479.
- Miller Jones, J. et al. (2015). Nutritional Impacts of Different Whole Grain Milling Techniques. Cereal Foods World, 60(3):130–139.
- FSSAI (2020). Food Safety and Standards – Cereal and Cereal Product Regulations.
- Malik, V.S. et al. (2019). Substituting Brown Rice for White Rice on Diabetes Risk Factors in India. Br. J. Nutr., 121(12):1389–1397.
Jai Jungle: Science Behind Tradition
“जहाँ हर दाने में छिपा है पोषण और परंपरा का विज्ञान।”

